Sunday, December 23, 2007

"टूटने का दर्द "

ये प्राची की लाली तब भी थी
सांझ गुलाबी तब भी थी,
जब आदम था ,जब कुन्ती थी ,
जब मज़नू था ,जब मीरा थी ,
सपने कभी न साजाओ इनके भरोसे
टूटने का दर्द ये नही समझते॥

"गुमनाम"

एक तानाशाह की अजनबी जमीं पर(जहाँ वो तख्ता-पलट के बाद आकर छिपा था)हुई मौत के बाद ये पंक्तियाँ मेरे जेहन में उभरी..

रात वो मर गया
गुमनाम सा कहीं और,
अपनों से भागकर
बनाई थी ये ठौर,
उनकी किस्मत लिखने का
गुमां था उसे कभी...

Sunday, December 9, 2007

"खुदा है कहाँ ?"

ये चंद एक पंक्तियाँ है , जो मैंने त्रिवेणी community पर लिखी थी .....

1.सारी रात आसमाँ पर चलते रहे,
बेशुमार सितारों से मिलते रहे ,

खुदा फिर भी ना मिला।

2.इतनी बेरहमी,बेशर्मी,कत्ले-आम ,
कैसे करे खुदा तेरा एहतराम;

तमाशा क्यों करे है सरे-आम।

Sunday, December 2, 2007

"मुमताज़ के ख्वाब पर"

जब भी नज़र जाती है ताज पर
अटकी सी जाती है
सीने मे सांस,
एक मुमताज़ के ख्वाब पर
टूट गई होंगी
ना जाने
कितने घरों की आस.