रात रोज आती ...
जोगी का फेरा लगाती,
सिरहाने ...
सपनो के दीप जलाती,
तकिए के पास ....
उम्मीद की सेंक सुलगा,
नई सुबह की ...
आश जगा जाती.
Monday, December 29, 2008
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