वो आई थी
एक बार फ़िर ,
मियाद बढ़वाने
मेरे भारत महान में ,
लोकशाही की साँसों की....
"आमार सोनार " से तो
उसका मोह टूट गया था ,
पर "गीता" की कर्मभूमि में
वो ढूढती है आ-आ कर ,
आज भी अपनों को ?
पर "वीसा" के डोर से बंधी
ये सांसे भी अब टूटने वाली है,
अधिकारों की बातें करता
संविधान अपना ,
लगता अब जाली है ....