Tuesday, August 18, 2009

~"वीसा" की डोर से बंधी~

वो आई थी

एक बार फ़िर ,

मियाद बढ़वाने

मेरे भारत महान में ,

लोकशाही की साँसों की....

"आमार सोनार " से तो

उसका मोह टूट गया था ,

पर "गीता" की कर्मभूमि में

वो ढूढती है आ-आ कर ,

आज भी अपनों को ?

पर "वीसा" के डोर से बंधी

ये सांसे भी अब टूटने वाली है,

अधिकारों की बातें करता

संविधान अपना ,

लगता अब जाली है ....