Thursday, May 13, 2010

"जेठ की सुबह"

1.मंजिल की ...
 ना रही
अब  जुस्तजू
मुझको....


राह-ए-संगदिल....
आप सा मिल गया है ,
अब तो...


2.सुबह की राह्जोई है
 रात...



मरी नहीं...


बस सोई है
 रात...

3.पर ...

किसी किसी की रात,
ऐसे सो जाती है..

कि.....
सपने भी सो जाते हैं,

और  बस ...
जेठ की सुबह ही
हिस्से में आती है...