Sunday, April 29, 2007

'खामोशी'

खमोशी का भी एक
अलग सुरूर है,
पर ऐसे मे
आपका दिल
आपकी बात सुने.
तो उनका बाद मे
आना भी मंजूर है.
पर इस दिल को
समझाऊं कैसे,
उनकी याद मे
मचलता ज़रूर है.
मैं, मेरा दिल
और ये खामोशी
आपके इन्तज़ार मे हज़ूर है.

2 comments:

रंजू भाटिया said...

very nice words ...khamoshi ki apni khubsuar jubaan hai ..[:)]

Abha Khetarpal said...

bahut sunder likha hai Ram...keep it up..