Tuesday, May 1, 2007

'वो दरिया'

चलते रहे सारी उम
साथ -साथ
समानान्तर,
हम दरिया के
दो किनारे.
और
वो दरिया
हमें
ज़ुदा सा
साथ रखने की
लहरों से बांधता रहा.

6 comments:

सुनीता शानू said...

चलते रहे सारी उमर,
साथ-साथ...
समानान्तर,
हम दरिया के दो किनारे...
और वो दरिया,
हमे जुदा सा(यहाँ समझ नही आया)
साथ रखने की
लहरों से बान्धता रहा...
बहुत सुंदर विचार है...

आज आपको अपनी प्रोफ़ाईल विजिटर्स की लिस्ट मे देखा तो आपके ब्लोग तक पहुन्च गये..अच्छा लिखते है...
सुनीता(शानू)

डाॅ रामजी गिरि said...

Sunita ji,mai yehan yah kehna chahta hoon ki do sathi ,jo alag alag paristhitiyon me hain,juda hain jaise nadi ke do kinare ,phir bhi do kinaron ke beech doori hi nahi hai, bulki unko jodne ke liye pani bhi bahta hai pyar ki lahron ko liye.

Unknown said...

HELLO DOC...
Aap accha likhtey hai
simply AWESOME!!!!!!

गीता पंडित said...

sundar

saaree umr
saath rahakar
bhee nahee nmil paate,
do kinaare ,,,,,,
yahee niyatee hai....

laharen chaahe jithnee bhee koshish kar len..

bahut sundar...

aabhaar
dost

Gee said...

bahut sunder bhaav hai is kavita ke..apko saadhuvaad.

शोभा said...

ये दरिया ऐसा ही है । खुशनसीब हैं कि साथ- साथ चले हैं ।
क्या इतना सुख भी सबको मिल पाता है ?
जो भी मिले उसी का आनन्द उठाना जीवन है ।
सस्नेह