अज्ञॆय जी की एक अनोखी रचना से मैं रू-बरू हुआ आज.....
-----------------------------------------------------------------
सो रहा है झोंप अंधियारा नदी की जांघ पर
डाह से सिहरी हुयी वह चॉदनी
चोर पैरों से उलझकर झांक जाती है.
प्रस्फ़ुटन के दो क्षणो का मोल शेफ़ाली
विजय की धूल पर चुपचाप
अपने मुग्ध प्राणों से
अजाने ऑक जाती है.