1.उन कदमों तले आज सभ्यता कसमसा रही थी,
वो पापा के साथ काकटेल पार्टी में जा रही थी..
----इन पंक्तियों में मैंने 'बेटी' या 'पिता' के माध्यम से लिंग विशेष के उपर दोषारोपण नहीं किया है.. इनके माध्यम से आधुनिकता के दौर में ह्रास होते सामाजिक पारिवारिक मूल्यों की और इंगित किया है .. लिंग भेद से जोड़कर इसे ना देखे ... यहाँ प्रतीक में बेटी की जगह बेटा और मां या पिता कोई भी हो सकता है...
2.सारी रात 'दिया' जलता रहा उसकी रोशनी का लिए ,
और वो दीवानावार था जुगनुओं की चांदनी के लिए...
Friday, March 14, 2008
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10 comments:
आपकी इन चाँद पंक्तियों ने बहुत कुछ कह दिया हैं
परिवेश की व्याख्या बस समझ मैं आ जाने की बात हैं
बहुत सही.........
आपकी इन चाँद पंक्तियों ने बहुत कुछ कह दिया हैं
परिवेश की व्याख्या बस समझ मैं आ जाने की बात हैं
बहुत सही.........
aapne sab kuch kah diya ramji..
wow...very nice lines...
doctor saheb ab to kuch naya liki=hiye, bahut din hua...
आपकी भी बहुत अच्छा लिखते है
wah nice work.....
kis tarahan chotil hue hain naye jamane ki maar se aapne bakhubi samjhaya hai bahut accha...
और वो दीवानावार था जुगनुओं की चांदनी के लिए
maja aa gaya
kya baat hai. bhut badhiya.
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