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Monday, December 28, 2009
"चांदनी के भ्रम में "
गलत आवाज़ दे बैठा,
चांदनी के भ्रम में.
उसके पास भी उधार है
वो तो ...
सूरज से ले रखी है,
इस जनम के लिए.
Tuesday, August 18, 2009
~"वीसा" की डोर से बंधी~
वो आई थी
एक बार फ़िर ,
मियाद बढ़वाने
मेरे भारत महान में ,
लोकशाही की साँसों की....
"आमार सोनार " से तो
उसका मोह टूट गया था ,
पर "गीता" की कर्मभूमि में
वो ढूढती है आ-आ कर ,
आज भी अपनों को ?
पर "वीसा" के डोर से बंधी
ये सांसे भी अब टूटने वाली है,
अधिकारों की बातें करता
संविधान अपना ,
लगता अब जाली है ....