Tuesday, November 27, 2007

कवि नवीन सागर की बेमिसाल लेखनी

नवीन सागर की इस गाँधी वादी रचना से मेरी मुलाक़ात यहाँ के स्थानीय दैनिक अख़बार--अमर उजाला-के आखर पन्ने पर हुई .मैंने सोचा की आप सब को भी रूबरू करूं बेमिसाल पंक्तियों से ------

जिसने मेर घर जलाया
उसे इतना बड़ा घर देना
कि बाहर निकलने को चले
पर निकल ना पाए
जिसने मुझे मारा
उसे सब देना
मृत्यु ना देना
जिसने मेरी रोटी छीनी
उसे रोटियों के समुद्र मे फ़ेकना
तूफ़ान उठाना
मै नहीं मिला उनसे मिलवाना
मुझे इतनी दूर छोड़
कि बराबर संसार मे आता रहूं।

5 comments:

  1. वाह । नवीन सागर जी की कविता प्रस्‍तुत करने के लिए आपको बधाई । आपने तो कविताओं का संसार बसा रखा है अपने ब्‍लाग पर, कविता के चिट्ठों के लिंक एक जगह ला दिये हैं आपने । शुक्रिया ।

    आरंभ
    जूनियर कांउसिल

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  2. waah ramji ! ye naveen kavita padhne ka mauka deney ka shukriya
    regards
    namrata

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  3. वाकई अच्‍छी कविता पढवाई आपने

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  4. bhut he sehaj bhav liye hai kavita...shukriya isey share karney key liye

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  5. बहुत अच्छी कविता है !!

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