1.उन कदमों तले आज सभ्यता कसमसा रही थी,
वो पापा के साथ काकटेल पार्टी में जा रही थी..
----इन पंक्तियों में मैंने 'बेटी' या 'पिता' के माध्यम से लिंग विशेष के उपर दोषारोपण नहीं किया है.. इनके माध्यम से आधुनिकता के दौर में ह्रास होते सामाजिक पारिवारिक मूल्यों की और इंगित किया है .. लिंग भेद से जोड़कर इसे ना देखे ... यहाँ प्रतीक में बेटी की जगह बेटा और मां या पिता कोई भी हो सकता है...
2.सारी रात 'दिया' जलता रहा उसकी रोशनी का लिए ,
और वो दीवानावार था जुगनुओं की चांदनी के लिए...
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ReplyDeleteआपकी इन चाँद पंक्तियों ने बहुत कुछ कह दिया हैं
ReplyDeleteपरिवेश की व्याख्या बस समझ मैं आ जाने की बात हैं
बहुत सही.........
आपकी इन चाँद पंक्तियों ने बहुत कुछ कह दिया हैं
ReplyDeleteपरिवेश की व्याख्या बस समझ मैं आ जाने की बात हैं
बहुत सही.........
aapne sab kuch kah diya ramji..
ReplyDeletewow...very nice lines...
ReplyDeletedoctor saheb ab to kuch naya liki=hiye, bahut din hua...
ReplyDeleteआपकी भी बहुत अच्छा लिखते है
ReplyDeletewah nice work.....
ReplyDeletekis tarahan chotil hue hain naye jamane ki maar se aapne bakhubi samjhaya hai bahut accha...
ReplyDeleteऔर वो दीवानावार था जुगनुओं की चांदनी के लिए
maja aa gaya
kya baat hai. bhut badhiya.
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